झारखंड के नक्‍सल प्रभावित इलाकों में सिमटा आतंक, अब धूमधाम से मनेगा लोकतंत्र का उत्‍सव; पढ़ें कैसे बदले हालात

रांची: झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण साबित होता रहा है। हाल के वर्षों में सुरक्षाबल के प्रभावी अभियानों के बाद कई इलाके नक्सलियों से मुक्त हो चुके हैं। वहीं कई बड़े नक्सली मार गिराए गए और बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है। अब नक्सलियों के कमजोर पड़ने व कई इलाकों से खदेड़ दिए जाने के बाद हालात बदले हैं और भयमुक्त वातावरण में मतदान के लिए भी अनुकूल वातावरण बना है।

बूढ़ा पहाड़ के मतदाताओं में मतदान को लेकर उत्‍साह

राज्य के कई इलाके ऐसे हैं, जहां नक्सलियों के फरमान जारी किए जाने के बाद लोग डर के मारे में वोट डालने नहीं जाते थे। अब पलामू, चतरा, लातेहार, गढ़वा, गुमला, सिमडेगा, गिरिडीह, पश्चिमी सिंहभूम समेत कई इलाके ऐसे हैं, जहां नक्सलियों का आतंक का साया हट चुका है। इन इलाकों में संवेदनशील बूथों की संख्या में कमी आई है। वहीं कई इलाके ऐसे हैं जहां के मतदाता पहली बार लोग वोट डालने जाएंगे।

बूढ़ा पहाड़ से नक्सलियों को खदेड़े जाने के बाद यहां के आसपास के इलाके के लोगों में मतदान को लेकर खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे गढ़वा के भंडरिया थाना क्षेत्र की टेहरी पंचायत के हेसातू तथा लातेहार जिले के नावाटोली, तिसिया, कुजरूम आदि गांवों के लोग कई दशक बाद झारखंड के मतदान केंद्र पर वोट डालेंगे। इन लोगों ने पहले निकट के छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया था। अब ये लोग छत्तीसगढ़ से नाम हटवा कर यहां अपने इलाके में नाम जुड़वा रहे हैं।

गिरिडीह के राजधनवार विधानसभा क्षेत्र में स्थित देवरी, गावां, तीसरी तथा गिरिडीह में स्थित पारसनाथ, पीरटांड़, डुमरी आदि इलाकों में भी नक्सलियों का प्रभाव काफी कम हुआ है। यहां भी मतदान को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। राज्य के कई नक्सलप्रभावित रहे इलाके के बूथ ऐसे भी हैं, जहां लोग पहली बार वोट डालने जाएंगे।

सिंहभूम के कई इलाकों मे पहली बार पड़ेंगे वोट

सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सारंडा जंगल से घिरे माओवाद प्रभावित आंतरिक इलाकों में 13 मई को लंबे अंतराल के बाद लोग वोट डालेंगे। यहां लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकें, इसके लिए हेलीकाप्टरों की मदद से कर्मचारियों और चुनाव सामग्री को पहुंचाने की व्यवस्था की गई है।

यहां रोबोकेरा, बिंज, थलकोबाद, जराइकेला, रोआम, रेंगराहातु, हंसाबेड़ा और छोटानागरा जैसे दुर्गम स्थानों में 118 पोलिंग बूथ बनाए जा रहे हैं। नुगडी और बोरेरो के मध्य विद्यालय समेत कई बूथों पर पहली बार मतदान होगा। यहां कुछ क्षेत्रों में मतदान दलों को चार-पांच किलोमीटर पैदल भीचलना होगा। मतदान कर्मी हेलीकाप्टर के अलावा ट्रेन और बस से भी यात्रा करेंगे।

पिछले साल यहां 46 नक्सली घटनाएं हुई थीं, जिनमें 22 लोगों की मौत हो गई थी। सुरक्षाबल के जवान यहां नक्सलियों के विरुद्ध लगातार प्रभावी अभियान चलाकर उन्हें खदेड़ने में जुटे हैं। पुलिस-प्रशासन व सुरक्षा बल के जवान यहां आपरेशन एनाकोंडा समेत कई अभियान चलाकर नक्सलियों को बैकफुट पर लाने में सफल रहे। क्षेत्र में सुरक्षा बलों के कुल 15 नए शिविर स्थापित किए गए हैं। प्रशासन यहां लोगों के बीच मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है।

उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में पथ संपर्कता प्रदान करने की योजना से बन रही सड़क।

चतरा के इस गांव की भी बदली तस्‍वीर

चतरा जिले के घोर सुदूरवर्ती और उग्रवाद प्रभावित गांवों में एक गड़िया-अमकुदर है। भाकपा माओवादियों का सबसे सुरक्षित क्षेत्र माना जाता था। कौलेश्वरी जोन के अंतर्गत था। 5 सितंबर 1996 को माओवादियों ने भाकपा माले के एक दर्जन नेताओं व कार्यकर्ताओं का संहार कर दिया था। क्षेत्र बिहार की सीमा से सटा है।

गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र के धनगाई गांव से सटे जंगली क्षेत्र में 29 जनवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू के हेलिकाप्टर को जला दिया था। 1999 के लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद वोट बहिष्कार का उल्लंघन करने पर टंडवा थाना क्षेत्र के कामता गांव निवासी जसीमउद्दीन अंसारी का हाथ और महादेव यादव का अंगूठा काट दिया था।

यहां उग्रवादियों का प्रभाव इतना अधिक था कि लोग मतदान केंद्र की ओर जाने में खौफ खाते थे। यह स्थिति 2009 तक देखने को मिली। 2009 के लोकसभा चुनाव में चतरा संसदीय क्षेत्र में मात्र 45.62 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि 2019 में 64.97 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया। दस वर्षों में 19.35 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह सकारात्मक बदलाव तेजी से किए गए विकास के कारण आया।

राजपुर और वशिष्ठ नगर थाना क्षेत्रों के डेढ़ दर्जन गांवों की तस्वीर बदल गई है। घनघोर जंगल और पहाड़ों की तराई में बसे उन गांवों तक पहुंचना जन साधारण के लिए आसान नहीं था। पगडंडियों के सहारे ग्रामीण अपनी मंजिल तय करते थे। अब यहां सड़कों का विकास हुआ। बिजली की व्यवस्था की गई। सरकारी स्कूलों की व्यवस्था सुधरी। पीने का पानी के लिए हैंडपंप लगाए गए।

पुलिसिया अभियान से कौलेश्वरी जोन को माओवादियों से मुक्त करा दिया गया। अमकुदर गांव निवासी सुशील गंझू कहते हैं कि पिछले तीन-चार वर्षों में अप्रत्याशित बदलाव हुए हैं। लेढो की सुनीता देवी कहती हैं कि एक समय था, जब गांव तक कोई वाहन नहीं आते थे। आज यात्री वाहनों का परिचालन हो रहा है। अब कोई भय का वातारण नहीं है।

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