Jivitputrika Vrat 2024 : माँ अपने संतान के लिए कुछ भी कर सकती है. वह हर समय संतान की उज्वल भविष्य की कामना चाहती है | हर माँ की कामना होती है कि उसका पुत्र राजा के समान हो और दीर्घायु हो इसलिए वह अपने संतान के लिए उत्तम व्रत जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत करती है जिसका नाम जितिया या जीतवाहन है | यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है. यह व्रत तीन दिनों का होता है | सप्तमी को शुद्ध होकर रात्रि में भोजन किया जाता है और अष्टमी के दिन उपवास कर नवमी को पारण किया जाता है | व्रत के दिन चील्हु सियार का कथा सुनने का विधान है |
जीवित्पुत्रिका व्रत इस बार 25 सितंबर को रखा जाएगा | ऋषिकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार जीवित पुत्रिका व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा. 24 सितंबर को अष्टमी तिथि संध्या 05: 57 मिनट पर होगी और 25 सितंबर को संध्या 04: 56 मिनट पर समाप्त होगा |
जिउतिया व्रत की पौराणिक कथा
वैसे इस व्रतराज के अनेक कथा प्रचलित है | पर जितवाहन का कथा सबसे ज्यादा प्रचलन में है | गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे | युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे | एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा | इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है | नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया | गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला | जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया | जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया |